आईटीआर फाइल करवाने के लिए सीए की मदद ले रहे हैं तो ये जानकारी आपके लिए है। एक सीए को लेकर टैक्स पेयर को भरोसा होता है कि सीए सारी डिटेल्स ठीक तरह से मैनेज करे ताकि ज्यादा से ज्यादा बचत का फायदा मिल सके। सीए से फॉर्म फिल करवाने का मतलब हुआ कि जुर्माने की नौबत न आना। हालांकि बावजूद इसके आपकी जिम्मेदारी यहीं खत्म नहीं होता।
इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के लिए सीए की मदद लेना एक समझदारी वाला फैसला हो सकता है। एक सीए को लेकर टैक्स पेयर को भरोसा होता है कि सीए उसके इनकम और टैक्स को ठीक तरह से मैनेज करे ताकि, ज्यादा से ज्यादा बचत का फायदा मिल सके। इसके साथ ही सीए से फॉर्म फिल करवाने का मतलब हुआ कि जुर्माने की नौबत न आना और विभाग की ओर से किसी तरह के नोटिस मिलने की गुंजाइश न होना। हालांकि, अगर आपने सीए से अपना रिटर्न फाइल करवाया है तो आपका काम यहीं खत्म नहीं होता,
आईटीआर को लेकर आपको भी सतर्कता बरतनी जरूरी है। यह बेहद जरूरी है कि आप डिटेल्स को मैच करें। किसी स्थिति में सुधार की जरूरत महसूस हो तो तुरंत करें।
ITR फॉर्म भरवाने के बाद बरतें सतर्कता
ITR फॉर्म भरवा चुके हैं तो ये आपकी जिम्मेदारी बनती है कि आप Form 16 और Form 16A में मौजूद जानकारियों को मिलाएं। आप AIS और 26 AS फॉर्म डाउनलोड कर सकते हैं। दोनों के आंकड़ों को चेक कर सकते हैं। इसके बाद यह भी जरूरी है कि सीए द्वारा फाइल की गई आटीआर के डिटेल्स फॉर्म एनुअल इंफॉर्मेशन स्टेटमेंट (AIS) और टैक्स क्रेडिट स्टेटमेंट (26 AS) से मिलाएं। चेक करें कि डिटेल्स में किसी तरह का कोई अंतर न हो।
अगर किसी स्थिति में टैक्सपेयर की इनकम और एनुअल इंफॉर्मेशन स्टेटमेंट डिटेल्स मैच नहीं करती हैं तो इसे सुधारने पर ध्यान दें।
ध्यान दें, एनुअल इंफॉर्मेशन स्टेटमेंट ( AIS) वित्त वर्ष के दौरान टैक्सपेयर की इनकम और वित्तीय लेनदेन की जानकारी देता है। इसमें सैलरी से इनकम, बैंक डिपॉजिट से ब्याज, शेयर ट्रेडिंग से मुनाफा, प्रॉपर्टी की खरीद- बिक्री से इनकम, म्यूचुअल फंड्स में निवेश शामिल होता है। वहीं,
टैक्स क्रेडिट स्टेटमेंट (26 AS) से टैक्सपेयर के टीडीएस और एडवांस टैक्स की जानकारी मिलती है।
अपने लिए सही टैक्स रिजीम को चुनें
टैक्सपेयर का एक सवाल यह भी होता है कि आखिरी किस टैक्स रिजीम को चुना जाना चाहिए। इस सवाल का सीधा जवाब यही है कि टैक्सपेयर अपनी सुविधाओं के मुताबिक अपने लिए एक सही टैक्स रिजीम को चुन सकता है। उदाहरण के लिए मेडिकल खर्च, होम लोन पर ब्याज, ट्यूशन फीस, बीमा प्रीमियम की कटौती का फायदा चाहिए तो टैक्सपेयर को पुरानी रिजीम को ही चुनना चाहिए।
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