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ओलंपिक में सफलता के लिए विनिंग माइंडसेट और दृढ़ संकल्प है जरूरी: नीरज चोपड़ा और नोवाक जोकोविच बने मिसाल

ओलंपिक में एथलीट कितनी भी तैयारी के साथ पहुंचे, मेडल जीतने के लिए विनिंग माइंडसेट सबसे जरूरी है। किसी भी परिस्थिति में मेडल जीतने की जिद्द होनी चाहिए। तभी एक एथलीट ओलंपिक में सफल हो पाता है। भारत के नीरज चोपड़ा से लेकर सर्बिया के नोवाक जोकोविकच इसके बड़े उदाहरण हैं।
नोवाक जोकोविच ओलंपिक से दो महीने पहले तक पूरी तरह फिट नहीं थे। उनकी सर्जरी भी हुई थी। फिर वह विंबलडन में उतरे और फाइनल तक पहुंचे जहां उन्हें कार्लोस अल्काराज ने हरा दिया। नोवाक के लिए सर्बिया की ओर से ओलंपिक में उतरने की बाध्यता नहीं थी। मगर गोल्ड मेडल जीतने की जिद्द लिए वह पेरिस पहुंचे। एक बार फिर फाइनल में उनके सामने अल्काराज थे। नोवाक ने अपने से 16 साल छोटे अल्काराज को बेस्ट ऑफ थ्री सेट में तकरीबन तीन घंटे में हराया। मैच के बाद उनसे पूछा गया कि वह क्या चीज है जो इस उम्र में भी उन्हें बेस्ट बनाती है। जोकोविच का जवाब था, ‘मुझे नहीं मालूम। मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि जब कोर्ट पर जाऊंगा तो जीत की मानसिकता के साथ जाऊंगा। वर्ना आप देखिए कि इस दौर के सबसे अच्छे युवा खिलाड़ी के खिलाफ जीत हासिल करना आसान नहीं होता। मुझे याद नहीं कि मैंने दो सेट का कोई मैच तीन घंटे तक खेला हो।’

इंजरी के बावजूद जीते नीरज

नोवाक जोकोविच ही क्यों, भारत के अपने नीरज चोपड़ा का ही उदाहरण लिया जा सकता है। नीरज भी पिछले काफी दिनों से ग्रोइन इंजरी से परेशान थे। उन्होंने इस दौरान ओलंपिक से हटने के बारे में कभी नहीं सोचा। नीरज इंटरनेशनल लेवल पर जब से सुर्खियों में आए हैं, शायद एक दफा भी ऐसा नहीं रहा जब वह मेडल के बगैर स्वदेश लौटे हों। पेरिस भी वह गोल्ड के टारगेट के साथ आए थे। इंजरी के बावजूद उन्होंने सीजन बेस्ट परफॉर्म किया और सिल्वर जीतने में सफल रहे। नीरज से पूछा गया कि ओलंपिक में जीत के लिए सिर्फ स्किल्स काफी हैं या कुछ और चाहिए। नीरज ने कहा, ‘मेरे हिसाब से माइंडसेट का रोल बड़ा होता है। मेरे साथ फिटनेस की भी समस्या थी। अरशद ने जब 93 मीटर के करीब थ्रो कर दिया तो भी मैं नहीं सोच रहा था कि अब वहां तक नहीं पहुंच सकता। मेरी मानसिकता उस वक्त भी ऐसी थी कि मैं भी वहां तक थ्रो कर सकता हूं।’

वर्ल्ड रिकॉर्ड घूमता है मोंडो के मन में

पेरिस गेम्स में पोल वॉल्ट का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने वाले स्वीडन के अर्मांड गुस्ताव डुप्लांटिस की अलग ही फिलॉसफी है। केवल 24 साल के मोंडो के रेकॉर्ड के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘यह कोई तुक्के में नहीं बन गया। मैंने पिछले कुछ महीनों में हजार बार से अधिक अपने मन में दोहराया है कि वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाना है। मैंने कुछ दिन पहले सपने में खुद को वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाते हुए देखा था। यहां जो हुआ वह बिल्कुल वैसा ही था जैसा मैंने सपने में सोचा था।’

एक दर्जन हो सकते थे मेडल

भारत के छह खिलाड़ियों ने चौथा स्थान हासिल किया। यह अगर ब्रॉन्ज में तब्दील हो जाते तो भारत के खाते में छह नहीं बल्कि एक दर्जन मेडल होते। लक्ष्य सेन ने ब्रॉन्ज मेडल मैच में पहला गेम जीत लिया था। फिर उनका खेल ट्रैक से उतर गया। वह मेडल से चूक गए। चैंपियन विक्टर एक्सेलसेन से जब NBT ने लक्ष्य की कमियों के बारे में पूछा तो उनकी राय थी, ‘वह काफी प्रतिभावान हैं। मगर उन्हें इस तरह के मैच को और डीप तक ले जाना होगा। समय के साथ वह सीखेंगे।’ भारतीय ओलंपिक दल के प्रमुख पूर्व शूटर गगन नारंग कहते हैं, ‘चीजें बदली हैं। जब हम खेलते थे तो और मैं बताता था कि शूटिंग कर रहा हूं, लोग पूछते थे कि किस फिल्म की! अब ऐसा नहीं होता। पहले से काफी बदलाव आया है।’

सिर्फ बेहतरीन सुविधाएं ही मेडल की गारंटी नहीं

क्या सिर्फ बेहतरीन सुविधाओं से ही संभव है कि मेडल आ जाएं? अगर ऐसा होता तो केन्या के पास चार गोल्ड समेत 11 मेडल नहीं होते। केन्या के खिलाड़ी और कोच ओलंपिक से कुछ हफ्तों पहले तक आर्थिक मदद की आस लगाए बैठे थे। यूक्रेन के खिलाड़ियों की प्रैक्टिस लंबे समय से बाधित है। उनकी मीडिया मैनेजर एनहेलिना कारपेन्को ने बताया, ‘कब साइरन बज जाए और हमारे ऐथलीट्स को बंकर में जाना पड़े, कहा नहीं जा सकता। सभी ने डर के साए में तैयारी की है।’ यूक्रेन की वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर हाई जंपर यारोस्लावा मोहुचिख 22 साल की हैं। पेरिस में गोल्ड जीतने के बाद उन्होंने कहा, ‘हमारी तैयारी आदर्श नहीं थी। मगर हमारा मकसद साफ था। हम दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि हम बेस्ट हैं।’ मेडल टेबल में टॉप-10 पर रहने वाले देशों से कंपीट करने में भारत को लंबा समय लगेगा। भारत को ऐसे कुछ खेलों को चिन्हित करना होगा जिसमें उसके खिलाड़ी दुनिया को टक्कर देने की स्थिति में हैं। उनमें ही सौ फीसदी तन-मन-धन लगाना होगा।

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