प्रधानमंत्री मोदी ने जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त 109 फसलों की किस्में जारी कीं, विपरीत परिस्थितियों में भी देंगी भरपूर पैदावार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलवायु अनुकूल, जैव सशक्त, ज्यादा उपज देने वाली 61 फसलों की 109 किस्में लॉन्च की हैं। इन 61 फसलों में 34 खेती की फसलें हैं और 27 बागवानी की फसलें हैं। पीएम ने कहा कि इनकी खेती करने पर किसानों का खर्चा कम और मुनाफा ज्यादा होगा। ये फसलें पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेंगी। आइए- समझते हैं कि क्या हैं जलवायु अनुकूल फसलें, इन्हें स्मार्ट क्रॉप क्यों कहा जा रहा है?
दूसरे विश्वयुद्ध की बात है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति हेनरी ट्रूमैन ने जापानी शहर हिरोशिमा पर भारी परमाणु बम गिराने का दुर्भाग्यपूर्ण फैसला किया। 6 अगस्त, 1945 को परमाणु बम ‘लिटिल बॉय’ गिराया गया, जिसमें 70 हजार लोग मारे गए और लाखों लोग घातक रेडिएशन के शिकार हुए। जापान अभी यह सोच में ही पड़ा हुआ था कि क्या किया जाए, तब तक नागासाकी में एक और बम ‘फैट मैन’ गिरा दिया गया। इस बम हमले में कम से कम 40 हजार लोग फौरी तौर पर मारे गए और बाद में रेडिएशन से 40 हजार और ज्यादा लोगों ने जान गंवाई।
15 अगस्त, 1945 को जापान के सम्राट हिरूहितो ने बिना शर्त सरेंडर कर दिया। इसी के साथ दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हो गया। हिरोशिमा में हुए बम धमाकों में 90 हजार इमारतें जमींदोज हो गईं। मगर, इन ताकतवर बम धमाकों से भी ज्यादा ताकतवर एक छोटी सी चीज थी, वह थी मटर के दाने जितना बराबर एक बीज। यह बीज था-जिन्कगो। ऐसे ही ताकतवर बीजों से रूबरू होंगे, जिनमें हर हालात को झेलने की क्षमता होती है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (India Agricultural Research Institute) में ज्यादा पैदावार वाली जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त फसलों की 109 किस्में जारी कीं। ये फसलें भी बाढ़ हो या सूखा, प्रदूषण हो या फिर झुलसाती हुई लू हो, हर हालात में भरपूर पैदावार देती हैं।
एक बीज में 3 हजार ट्रक विस्फोटक सहने की पावर
एक बीज में कितनी ताकत होती है? कभी ये सवाल पूछा है आपने? शायद नहीं। एक आकलन करते हैं। नागासाकी या हिरोशिमा में जो परमाणु बम गिराए गए थे। उनसे हरेक में 21 हजार टन विस्फोटक (ट्राइ्र नाइट्रो टालुइन यानी TNT) जितनी एनर्जी निकली। यानी एक ट्रक में औसतन 7 टन वजन लादने की क्षमता होती है। ऐसे में माना जा सकता है कि जापान के इन शहरों पर गिराए गए परमाणु बम में करीब 3 हजार ट्रकों जितना विस्फोटक हो सकता है। इसके बाद भी हिरोशिमा या नागासाकी में एक पेड़ ऐसा भी था, जिसने हर तरफ नाचती मौत के बीच भी जिंदगी की उम्मीद बंधाई। ये थे जिन्कगो के पेड़। यही जिन्कगो के पेड़ों के बीजों को पूरी दुनिया में शांति के प्रतीक के तौर पर फैलाया गया। इन बीजों ने परमाणु बमों को झेलने की ताकत है।
क्या होते हैं क्लाइमेट रेजिएलेंट क्रॉप, जिन पर है मोदी का जोर
दिल्ली यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सना रहमान के अनुसार, क्लाइमेट रेजिलिएंट क्रॉप (सीआईसी) वो वैरायटी होती जो क्लाइमेट स्ट्रेसेज में भी अच्छी तरह से उगते हैं। ये फसलें बाढ़, सूखा, तापमान बढ़ जाना, भीषण लू, पेस्ट अटैक ( जैसे की टिड्डी दल) और कार्बन डाई आक्साइड जैसी जहरीली हवाए को झेल लेती हैं। आम तौर पर ये फसलें गेहूं, चावल, रागी, मक्का और बाजरा हैं। ऐसी फसलें हाइब्रिडाइजेशन तकनीक, चुने हुए जीन ट्रांसफर करके और जेनेटिकली मॉडीफाइड कीड़ों की मदद से उगाई जाती हैं। इन फसलों पर क्लाइमेट चेंज का असर कम होता है और बिना किसी चिंता के किसान अच्छी फसल काट सकता है। इसे खेती-किसानी का अमृतकाल भी कहा जा रहा है।
30 साल में दुनिया की 200 करोड़ आबादी को भोजन देना बड़ी चुनौती
इंग्लैंड की शेफील्ड यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल फूड के मुताबिक, अगले 30 सालों में दुनिया 200 करोड़ आबादी को भोजन मुहैया कराना बड़ी चुनौती होगी। ऐसे में हमें कम पानी का इस्तेमाल करके ज्यादा पैदावार वाली फसल की किस्में विकसित करनी चाहिए। ऐसे में क्लाइमेट रेजिलिएंट क्रॉप इस दिशा में बड़ी उम्मीद बन सकती हैं।
“जापान में जिन्कगो के ये पेड़ बहुत आम हैं। ये पेड़ आज दुनियाभर में स्थायी शांति के प्रतीक बन चुके हैं”
स्मार्ट क्रॉप का है जमाना, न पानी न चाहिए प्रोटेक्शन
डॉ. सना रहमान के अनुसार, स्मार्ट क्रॉप भी उन को कहा जाता है जिनको ना ही ज्यादा पानी की, न ही कीटनाशकों की और न ही प्रोटेक्शन की जरूरत पड़ती है। ये तेज गर्मी को भी बर्दाश्त कर पाते हैं। इनसे मिट्टी भी नष्ट नहीं होती, इसलिए इन्हें उगाने में किसानों को काफी फायदा है।
क्यों जरूरी हैं ऐसी फसलें, क्या ये दुनिया की भूख मिटा पाएंगी
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2050 तक दुनिया में 9.7 बिलियन लोगों को खाने की व्यवस्था करानी होगी। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि एजेंसी (FAO) के अनुसार इस पूरी आबादी को भोजन मुहैया कराने के लिए पैदावार में 70% बढ़ोतरी होनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र के 2030 के एजेंडा के अनुसार, गरीब और कमजोर लोगों को पूरे साल तक पौष्टिक और पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराना मुख्य मकसद है। मौजूदा फूड इंडस्ट्री दुनिया की 30% ऊर्जा खपत और 22% ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। ऐसे में चुनौती केवल ज्यादा खानपान की व्यवस्था नहीं है, बल्कि इसे नियमित रूप से करना है।
खेती में AI और ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों का इस्तेमाल
सना रहमान के अनुसार, स्मार्ट खेती में किसान ड्रोन, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, ब्लॉकचेन और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे खेती-किसानी के हर स्टेज में फसलों को जरूरत के मुताबिक ढालने और मौसम संबंधी आंकड़ों के साथ ज्यादा पैदावार ले सकते हैं। ब्लॉकचेन फसलों और मवेशियों की वृद्धि से लेकर आपूर्तिकर्ताओं को सौंपे जाने तक की निगरानी करना संभव बनाता है। वहीं, एआई का इस्तेमाल खेतों का सटीक आकलन करने, फर्टिलाइजर्स के और कीटनाशकों के सही इस्तेमाल को संभव बनाता है।
भारत में हरित क्रांति की शुरुआत 60 के दशक में
भारत में हरित क्रांति को तीसरी कृषि क्रांति के रूप में भी जाना जाता है। खेती में ये बदलाव द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विकसित देशों में शुरू हुए और 1980 के दशक के अंत तक पूरी दुनिया में यह क्रांति फैल गई। हरित क्रांति शब्द का पहली बार इस्तेमाल 1968 में संयुक्त राज्य अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी (USAID) के पूर्व निदेशक विलियम गौड ने किया, जिन्होंने खेती में तकनीक की वकालत की थी। भारत के हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन को माना जाता है। इस क्रांति से भारत में भी सूखा, बाढ़, चक्रवात, आग और फसली रोगों के दौरान किसानों की फसलों का बीमा, बीज और खाद के लिए सस्ती दरों पर कर्ज मुहैया कराया गया। 1960 मे मैक्सिको से लाई गई गेहूं और चावल के उन्नत किस्म के बीजों से नई क्रांति की शुरुआत हुई, जिसने गेहूं और चावल के मामले में देश को आत्मनिर्भर बना दिया।
दुनिया का सबसे पुराना बीज खजूर का
frontiersin.org के अनुसार, बीजों में लंबे समय तक जीवित रहने की संभावना होती है। ऐसे कई बीज रहे हैं, जिनका इस्तेमाल विलुप्त जीनोटाइप या प्रजातियों को पुनर्जीवित करने के लिए किया गया है। सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाला बीज खजूर की एक प्रजाति ‘फीनिक्स डेक्टाइलीफेरा एल’ है। अनुमान लगाया गया है कि ये बीज 2000 साल पुराने हैं, इनमें से एक 2005 में अंकुरित हुआ था। 1873 में इराक की राजधानी बगदाद में जटाए गए खजूर के इन बीजों पर अध्ययन किया गया था, जिनमें ये बात सामने आई थी। इससे पहले दक्षिण अफ्रीका में 270 साल पुराने एकेशिया के बीजों को अंकुरित किया गया था। इसी तरह चीन में 1288 साल पुराने कमल के बीजों को फिर से उगाया गया था।