प्रधानमंत्री मोदी पोलैंड यात्रा के दौरान गुड महाराजा स्क्वैयर का कर सकते हैं दौरा, द्वितीय विश्वयुद्ध में भारतीय महाराजाओं ने दी थी पोलिश बच्चों को शरण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पोलैंड यात्रा के दौरान वर्साय के गुड महाराजा स्क्वैयर भी जा सकते हैं। पोलैंड ने भारत के दो महाराजाओं के सम्मान में यह स्मारक बनाया है। दरअसल, द्वितीय विश्वयुद्ध में पोलैंड के हजारों बच्चों को भारत के दोनों महाराजाओं ने शरण दी थी।
किए गए उपकार को दुनिया अक्सर याद रखती है। पोलैंड ने भी भारत के प्रति कृतज्ञता का यही भाव दिखाया है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पोलैंड के दौरे पर जा रहे हैं तो वो पोलैंड के इस भाव का इजहार कर रहे स्मारक पर भी जाएंगे। पोलैंड की राजधानी वर्साय में ‘गुड महाराजा स्क्वैयर’ वह स्मारक है जो द्वितीय विश्वयुद्ध के वक्त पोलैंड पर भारत के किए उपकार की गाथा बताता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस स्मारक पर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे।
नवानगर के महाराज का पोलैंड में आदर क्यों?
वर्साय के गुड महाराजा स्क्वैयर का निर्माण भारत में नवानगर के तत्कालीन शासक महाराजा जाम साहेब दिग्विजिय सिंह जी रणजीत सिंह जी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए किया गया। नवानगर के महाराजा ने पोलैंड के हजारों बच्चों के एक समूह को संरक्षण दिया था। 1939 से 1945 तक द्वितीय विश्वयुद्ध चला। उस युद्ध में पोलैंड को दुश्मन देशों ने तबाह कर दिया था। तब नवानगर के शासक जाम साहेब दिग्विजिय सिंह जी रणजीत सिंह जी और कोल्हापुर के महाराज श्रीमंत राजश्री छत्रपति साहू ने पोलैंड के करीब 5,000 नागरिकों को शरण दिया था। ये पोलिश नागरिक 1942 से 1946 तक दोनों महाराजाओं के संरक्षण में रहे थे।
द्वितीय विश्वयुद्ध की वो कहानी जानिए
पोलैंड में खासकर नवानगर के महाराजा की खास प्रशंसा हुई क्योंकि उन्होंने सबसे पहले 1,000 पोलिश बच्चों को संरक्षण देने का फैसला किया। उन बच्चों को सोवियत संघ के लेबर कैंपों से छोड़ा गया था। वो बच्चे युद्ध में तबाह हुए अपना देश पोलैंड लौट नहीं सकते थे। तब नवानगर के महाराजा ने उन्हें अपने यहां शरण दिया। द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत में रूस और जर्मनी के बीच समझौते के तहत पोलैंड को दो हिस्सों में बांट दिया गया। दरअसल, रूस और जर्मनी ने यूरोप को अपने-अपने हिस्से में बांटने के लिए यह समझौता किया था। पोलैंड के बंटवारे के बाद सोवियत संघ के कब्जे वाले हिस्से से कई पोलिश परिवारों को लेबर कॉलोनियों में लाया गया।
हालांकि, 1941 तक यह स्पष्ट हो गया कि रूस-जर्मनी का समझौता टिका नहीं रह पाएगा और रूस की मदद से पोलैंड में रेजिस्टेंस आर्मी की तादाद बढ़ाई जाएगी तब मॉस्को ने कुछ कैदियों और उनके परिवारों को आजाद करने का फैसला किया। तब नवानगर के महाराजा ने सबसे पहले उन्हें शरण देने का ऑफर दिया। हालांकि, कई पोलिश बच्चे और दूसरे शरणार्थी दुनिया के अन्य हिस्सों में भी गए।
रूस-यूक्रेन युद्ध में पोलैंड ने की भारत की मदद
समय का चक्र देखिए। 20 फरवरी, 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ तो भारत के कई छात्र यूक्रेन में फंस गए। उन्हें बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था। तब भारत सरकार ने पोलैंड की सरकार से बात की। इस बातचीत में द्वितीय विश्वयुद्ध के दिनों की भी चर्चा हुई। पोलैंड ने तब भारतीय छात्रों को यूक्रेन से निकालने में भरपूर मदद की थी।