रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2023-24 तक देश में कुल डीमैट खातों की संख्या 15 करोड़ के पार पहुंच गई, जिनकी संख्या 2013-14 में 2.20 करोड़ थी। इनमें एनएसई के निवेशकों की संख्या 9.2 करोड़ है। चालू वित्त वर्ष में अब तक डीमैट खातों की संख्या बढ़कर 17.76 करोड़ के स्तर पर पहुंच गई है।
बेहतर रिटर्न की उम्मीद में घरेलू शेयर बाजारों में निवेशकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। डीमैट खातों की संख्या में तेज बढ़ोतरी इसकी तस्दीक कर रही है। एसबीआई की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले 10 साल में नए डीमैट खातों की संख्या में 39 गुना की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 2014 में देश में 10 लाख डीमैट खाते खुले थे, जिनकी संख्या अक्तूबर, 2024 तक बढ़कर रिकॉर्ड 3.91 करोड़ पहुंच गई। उम्मीद है कि इस साल नए डीमैट खातों की संख्या चार करोड़ के पार निकल जाएगी।
एनएसई की बाजार पूंजी 6 गुना बढ़ी
बाजार में निवेशकों की बढ़ती संख्या के कारण नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) की बाजार पूंजी वित्त वर्ष 2013-14 के बाद से छह गुना से अधिक बढ़ी है। 2013-24 में एनएसई की बाजार पूंजी 73,000 करोड़ रुपये थी, जो 2024-25 में अब तक बढ़कर 441 लाख करोड़ रुपये पहुंच गई।
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- एनएसई पर प्रति निवेशक औसत निवेश डेढ़ गुना बढ़ा है। 2013-14 में हर निवेशक औसतन 19,460 रुपये निवेश करता था, जो 2024-25 में अब तक बढ़कर 30,742 रुपये पहुंच गया।
10 साल में 10 गुना ज्यादा जुटाई गई रकम
रिपोर्ट के मुताबिक, 2013-14 से 2024-25 के अक्तूबर तक की अवधि तक राइट्स इश्यू, आईपीओ और अन्य इश्यू से 10 गुना ज्यादा रकम जुटाई गई। 2014 में यह 12,008 करोड़ रुपये थी, जो इस साल अक्तूबर तक बढ़कर 1.21 लाख करोड़ रुपये पहुंच गई। 2013-14 में कुल 56 इश्यू आए थे, जिनकी संख्या अब 302 हो गई।
- पश्चिमी राज्यों ने जुटाई सर्वाधिक पूंजी : पश्चिमी राज्यों ने सर्वाधिक 54 फीसदी पूंजी जुटाई है। उत्तरी भारत की कंपनियों ने 23.18 फीसदी रकम जुटाई।
एसआईपी : 4.85 करोड़ खाते खुले
चालू वित्त वर्ष में अब तक कुल 4.85 करोड़ नए एसआईपी खाते खुले हैं, जबकि 2017-18 में इनकी संख्या 1.16 करोड़ रही थी। इस अवधि में एसआईपी के जरिये निवेश की जाने वाली रकम बढ़कर 1.85 लाख करोड़ रुपये पहुंच गई, जो 2017-18 में 67,000 करोड़ रुपये थी।
कुल वित्तीय बचत में संपत्तियों की हिस्सेदारी
वित्त वर्ष | भौतिक (%) | वित्तीय (%) |
---|---|---|
2014 | 63.6 | 36.4 |
2015 | 63.9 | 36.1 |
2016 | 55.1 | 44.9 |
2017 | 58.9 | 41.1 |
2018 | 60.4 | 39.6 |
2019 | 61.2 | 38.8 |
2020 | 59.7 | 40.3 |
2021 | 48.3 | 31.7 |
2022 | 63.9 | 36.1 |
2023 | 71.5 | 28.5 |
(सोर्स: एसबीआई रिपोर्ट)