इंडिया गठबंधन में बढ़ता असंतोष, ममता बनर्जी के नेतृत्व पर समर्थन से कांग्रेस हो सकती है अलग-थलग
इंडिया गठबंधन में कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर असंतोष बढ़ता जा रहा है. जिस तरह ममता बनर्जी के नाम पर देश के सभी बड़े दल और उनके नेताओं ने अपनी सहमति जताई है उससे साफ जाहिर है कि विपक्ष के बीच बहुत जल्द कांग्रेस अलग-थलग पड़ सकती है.
विपक्षी INDIA ब्लॉक में लीडरशीप के मुद्दे पर लगता है कि कांग्रेस अलग-थलग पड़ने लगी है. ममता बनर्जी ने इंडिया ब्लॉक के नेतृत्व की इच्छा जताई थी, जिसके बाद से कई नेताओं ने ममता का समर्थन किया है. पहले महाराष्ट्र की राजनीति के शहंशाह रह चुके शऱद पवार ने ममता बनर्जी को समर्थन किया अब आरजेडी के मुखिया और उत्तर भारत की राजनीति के स्तंभ रह चुके लालू प्रसाद यादव भी बनर्जी के पक्ष में खुलकर बैटिंग करते दिखें हैं. लालू यादव ने मंगलवार को कहा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इंडिया गठबंधन का नेता चुना जाना चाहिए. उन्होंने यह भी कह दिया कि कांग्रेस के विरोध का कोई मतलब नहीं है. ममता को ही नेता बनाया जाना चाहिए. इससे पहले लालू यादव के बेटे और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी संकेत दिया था कि ममता बनर्जी के नेतृत्व करने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि इस निर्णय पर आम सहमति से पहुंचा जाना चाहिए.
समाजवादी पार्टी और शिवसेना (उद्धव गुट) भी ममता के नाम पर पहले ही समर्थन करते देखे जा चुके हैं. तो क्या यह मान लिया जाए विपक्ष के रूप में कांग्रेस की भूमिका खत्म होने वाली है? इंडिया ब्लॉक के नेतृत्व के नाम पर जिस तरह का कमेंट कांग्रेस की ओर से आया है उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस के विरोध का भी कोई मायने नहीं रहने वाला है. फिलहाल जिस तरह की परिस्थितियां बन रही हैं उससे तो लगता है कि कांग्रेस विपक्ष के बीच भी अलग-थलग पड़ने वाली है.
ममता बनर्जी के नाम पर जिस तरह ताबड़तोड़ पूरा विपक्ष एका दिखा रहा है उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस अलग-थलग पड़ जाएगी. इंडिया गठबंधन के प्रमुख दलों में टीएमसी, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, एनसीपी (एसपी) , शिवसेना (यूबीटी), आरजेडी ने ममता बनर्जी के लिए हरी झंडी दिखा दी है. इसलिए इसमें कोई 2 राय नहीं हो सकती कि बहुत जल्दी हमें इंडिया गठबंधन का नया रूप देखने को मिलेगा. दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल और शरद पवार के बीच आज बैठक होनी है. इस दौरान भी इंडिया ब्लॉक के नेतृत्व को लेकर चर्चा हो सकती है. समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और कांग्रेस के साथ तल्ख रिश्ते जगजाहिर हैं.
अखिलेश यादव ने अभी हाल ही में हुए उत्तर प्रदेश के लिए होने वाले उपचुनावों में कांग्रेस को एक भी सीट देने की पेशकश नहीं की. समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनावों में बड़ा दिल दिखाते हुए कांग्रेस को 17 सीटें दी थीं. पर समाजवादी पार्टी को हरियाणा में कांग्रेस ने भाव नहीं दिया. इसी तरह आम आदमी पार्टी को भी हरियाणा में कांग्रेस ने तवज्जो नहीं दिया. यही नहीं इंडिया की बैठकों के दौरान भी समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी ने ममता बनर्जी को बहुत तवज्जो दी थी. अखिलेश ने लोकसभा चुनावों में टीएमसी के लिए एक सीट छोड़ कर अपने तरफ से दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया था. जहां तक कम्युनिस्ट पार्टियों की बात है केरल चुनावों को लेकर माकपा और कांग्रेस के बीच पहले से ठनी हुई है. जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. पर परिणाम होने के बाद ऐसा लगता है कि दोनों की राहें जुदा हो चुकी हैं.
2-पश्चिम बंगाल में मोदी मैजिक को फेल करती रही हैं ममता
पूरे देश में एक मात्र कोई पार्टी है जो भारतीय जनता पार्टी को पिछले 11 सालों में लगातार लोकसभा और विधानसभा चुनावों में धूल चटा रही है तो वो केवल टीएमसी है. ममता बनर्जी के नेतृत्व में उनकी पार्टी ने राज्य में कई बार मोदी मैजिक को फेल किया है. 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने 17 बार बंगाल की यात्रा की थी. पीएम नरेंद्र मोदी के कैंपेन का असर यह रहा कि 2014 तक पश्चिम बंगाल में दो सीटों पर रहने वाली बीजेपी के 18 सांसद 2019 में जीत गए. 2021 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने 74 सीटों की लंबी छलांग लगाई. कई बार ऐसा लगा कि अब ममता बनर्जी की कहानी बंगाल में खत्म हो चुकी है. पर हर बार ममता बनर्जी और मजबूत हो कर उभरीं. 2014 में पार्टी को 17 फीसदी वोट शेयर मिले थे, 2019 में बीजेपी को 40 फीसदी वोट मिले. विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने कुल 77 सीटें जीतीं थीं. 2024 के लोकसभा चुनावों में सभी सर्वे यही बता रहे थे कि इस बार बंगाल से टीएमसी का सफाया हो जाएगा. पर परिणाम एक बार फिर टीएमसी के पक्ष में आया. ममता ने 29 सीटें जीतीं, बीजेपी को केवल 12 सीट ही जीतने में सफल हो सकी.
भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल में टीएमसी की कमर तोड़ने के लिए तमाम तरीके अपनाए पर सफलता नहीं मिली. संदेशखाली मुद्दा, नागरिकता संशोधन कानून, शिक्षक भर्ती घोटाला, आदि को देखकर 2024 में ऐसा लगा कि अब ममता का किला नहीं बचेगा. पर दीदी ने इन मुद्दों का मुकाबला चतुर रणनीति के साथ किया. एनआरसी के बारे में ममता कहती रहीं कि इसके तहत तमाम लोगों को घुसपैठिया घोषित कर बंगाल से खदेड़ दिया जाएगा. इससे उस मतुआ समुदाय में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई जिसे ध्यान में रखते हुए भाजपा ने इसे लागू किया था. संदेशखाली मुद्दे को ममता ने बंगाल की महिलाओं की अस्मिता से जोड़ दिया. इस तरह जो मुद्दा ममता के महिला वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए भाजपा का सबसे बड़ा हथियार साबित हो सकता था, वही इस वोट बैंक को मजबूत करने का ममता का हथियार बन गया.
3-ममता आगे आती हैं तो बीजेपी का वंशवाद का मुद्दा फीका पड़ जाएगा
कांग्रेस के आगे रहने के चलते बीजेपी को एक बहुत बड़ी बढ़त इसलिए मिल जाती है कि पार्टी गांधी फैमिली को वंशवाद से जोड़ती रही है. पार्टी बार-बार कहती रही है कि क्या कांग्रेस में राहुल गांधी से योग्य कोई नहीं है? इसके साथ ही बीजेपी देश की सारी दुर्दशा के लिए गांधी फैमिली को जिम्मेदार ठहराती है. चूंकि एक ही परिवार को लोग अब तक कांग्रेस पर राज करते रहे हैं इसलिए जनता को यह बात बहुत जल्दी समझ में भी आ जाती रही है. बीजेपी इसी बात का फायदा उठाती रही है. पर ममता बनर्जी अगर आगे आती हैं तो बीजेपी का वंशवाद का आरोप भी काम नहीं करेगा. दूसरे ममता बनर्जी सेल्फ मेड लीडर हैं. इस तरह वह नरेंद्र मोदी के उस ऑईकॉनिक इमेज का विकल्प बनने का भी माद्दा रखती हैं.
4-लालू के कांग्रेस की जगह ममता को आगे लाने का मतलब है कि इंडिया गठबंधन की मजबूती
कांग्रेस के लिए इंडिया गठबंधन में सबसे विश्वसनीय सहयोगी के रूप में आरजेडी ही थी. लालू प्रसाद यादव शुरू से ही सोनिया गांधी के प्रबल समर्थक रहे हैं. सोनिया गांधी के खिलाफ विदेशी मूल का मुद्दा उठा तब भी वो सोनिया के साथ मजबूत दीवार की तरह खड़े रहे. हालांकि कई बार बिहार के स्थानीय कांग्रेस इकाई के चलते उनका मन खट्टा भी हुआ पर दोनों पार्टियों के बीच एका बना रहा. हालांकि लालू प्रसाद यादव को राहुल गांधी के लिए इस बात का मलाल जरूर होगा कि अगर वो मनमोहन सिंह कैबिनेट द्वारा लाए गए ऑर्डिनेंस को फाड़े नहीं होते तो उन्हें जेल में सजा नहीं भुगतनी पड़ी होती. इसके बावजूद इंडिया ब्लॉक में कांग्रेस को अगर मुख्य भूमिका मिली तो उसके पीछे लालू प्रसाद यादव ही थे. लालू प्रसाद यादव ने अगर नीतीश कुमार का नाम इंडिया गठबंधन के संयोजक के रूप में मान लिया होता तो हो सकता है कि नीतीश कुमार के साथ कुछ दिन और लालू यादव बिहार में सत्ता का सुख ले लिए होते. यही नहीं इंडिया का भविष्य भी आज कुछ और ही होता.